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Raj Sargam

Tragedy

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Raj Sargam

Tragedy

ढाल दो अंतिम साँचे में

ढाल दो अंतिम साँचे में

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होता जब अकेला हूँ तो लगता आधा हूँ

हो चुटकी बात तुमसे होता मुकम्मल हूँ 


छू लेती हो जब एक बूँद साहिल से तो

होता दलदल में खिलता सा कमल हूँ 


बिन पेंदी का लोटा, हो जाऊँ यहाँ-वहाँ

बस इतना भर कह देना मैं इसका हल हूँ 


कट गए पौधे तस्करी हवाओं की हो गई

तुम ही कहो अब रेगिस्तान हूँ या जंगल हूँ 


बन सिपाही इक दफ़ा आ जा बचाने

बोलबाला डाकुओं का जैसे घाटी चंबल हूँ 


ढाल दो अंतिम साँचे में बेशक्ल सप्ताह

क्योंकि न अभी सोम, न ही मंगल हूँ। 



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