अदृश्य नागरिक
अदृश्य नागरिक
खुद के सिर पर छत का कोई ठिकाना नहीं,
लेकिन आलीशान महल चौबारे बना देते हैं।
खुद को २ वक्त की रोटी तक नसीब नहीं ,
लेकिन धरती की कोख से अनाज कोठारों तक पहुँचा देते हैं।
खुद की काया पर वसन दिखते नहीं,
लेकिन अपने हुनर से हर नाप का वसन सिल देते हैं।
खुद को 2 घड़ी का भी आराम नहीं ,
लेकिन दूसरों को हर तरीके की सहूलियत उपलब्ध करवा देते हैं।
खुद को मिटा डालने में हमें जरा भी गुरेज नहीं ,
लेकिन हमारे जैसे ही हमारे कार्य भी अदृश्य ही रह जाते हैं।
हमें कभी श्रेय मिलता नहीं,
हमारा इतिहास कोई लिखता नहीं,
हमारी जान की परवाह कोई करता नहीं,
हम इस दुनिया के नींव के पत्थर,
हम मजदूर,
अदृश्य ही जीते है और अदृश्य ही मर जाते हैं।
