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Sanjay Raghunath Sonawane

Abstract

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Sanjay Raghunath Sonawane

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इन्सानियत

इन्सानियत

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जाती,धर्म का रिश्ता हमें इन्सानियत से दूर रखता है

मानवता से दूर रखकर स्वार्थ की भावना बढ़ाता है

इन्सानियत का रिश्ता हमारा निस्वार्थ भाव से बढ़ता है

प्यार ,दयाभाव की भावना हमें इन्सानियत सिखाती है 


इन्सानियत की भावना अंतःकरण से पावन होती है

रहम की भावना हर, पल, पल उनके खून में बसती है

प्रकृति के सारी चीजे, मानवता की वरदान है 

हर मौसम में मानवता को जीने को सिखाया है  


रोजी, रोटी का सवाल प्रकृति ने हरदम छुड़ाया है 

हर नन्हें जीवों को प्रकृति ने बचाया है

दुनिया के मानव जाति का विकास हमेशा करता है

हम तो अच्छे इन्सान है, रिश्ता मानवता का निभा रहे है 


 हर एक परिवार सुधर रहा है,विश्वविचार फैल रहा है

आपस के मतभेद से हमें आज सदा, सदा बचना है 

गरीब, अमीर यह भेदभाव सबकुछ हमें नहीं सिखना है 

सब है इन्सान, धरती माँ के एक विचार से रहना है  


छुत अछूत कोई नहीं, सबका खून एक है  

बुरी सोच को छोड़कर, अच्छी सोच करना है  

धरती माँ सबकी माँ भेदभाव उनमें कभी आता नहीं है 

दुनिया के कई छलकपट करनेवाले, मानवता को धोखा है


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