चूड़ियां
चूड़ियां
कितनी बेबस सी घुटन में आह भरती हैं यह चूड़ियां,
जब एक अजनबी अस्तित्व के हाथों में जा चढ़ती हैं यह चूड़ियां।
जब आग में तपकर निखरती हैं संवरती हैं यह चूड़ियां,
नए रंगों के लिबास ओढ़े तितलियों सी उड़ान भरती हैं यह चूड़ियां।
जब लोगों के तोह्फे में बंधकर सिमटने को हामी भरती हैं यह चूड़ियां,
घूट-घूट कर सांस लेना तब ही सीख लेती हैं यह चूड़ियां।
नहीं टूटने के डर से कभी कतराती हैं यह चूड़ियां,
महज़ एक आंधी के झोंके से खुद को बिखरा पाती हैं यह चूड़ियां।
मेरे लफ़्ज़ों के अनकहे जज्बातों में खो जाती हैं यह चूड़ियां,
कि खुद के होने भर की आहट तक नहीं बतलाती हैं यह चूड़ियां।