मछली आज फिर से उड़ना चाह रही
मछली आज फिर से उड़ना चाह रही
(भाग- २)
'मछ्ली' आज फिर से उड़ना चाह रही है,
'मछली' आज फिर से चलना चाह रही है।
चाहत पहले भी उड़ने की, है चाहत पर उड़ने की
चाहत सपना है बन बैठा, सच बस खोना है।
चमक उठी है आँखें कब से,सपनों से भरी पड़ी,
उन सपनो को पूर्ण करूँ, वह चाह रही है कब से।
उम्मीदों से भरी पड़ी है,सपनों से वह भरी पड़ी है,
सपना तो सपना बन बैठा,सच बस खोना है।
सच है सपनो में खोना, सच है अपना हक खोना,
सच है हर पल त्याग करे, त्याग का फल भी खो बैठे।
'मछली' आज फिर से उड़ना चाह रही है,
'मछली' आज फिर से चलना चाह रही है।
