बोलती कलम
बोलती कलम
1 min
12
जनता जो रोती तब नहीं हम हास्य हैं रचते।
जो छीनते निवाला, न गुणगान हैं रचते।
जनता जो रोती उसके हक में बोलती कलम,
चंद तालियों खातिर नहीं श्रृंगार हैं रचते।
