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कीर्ति जायसवाल

Others

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कीर्ति जायसवाल

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बोलती कलम

बोलती कलम

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जनता जो रोती तब नहीं हम हास्य हैं रचते।

जो छीनते निवाला, न गुणगान हैं रचते।

जनता जो रोती उसके हक में बोलती कलम,

चंद तालियों खातिर नहीं श्रृंगार हैं रचते।


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