STORYMIRROR

कीर्ति जायसवाल

Drama

4  

कीर्ति जायसवाल

Drama

मछली आज उड़ रही (भाग-3)

मछली आज उड़ रही (भाग-3)

1 min
407

(मछली स्त्री के प्रतीक के रूप में)

आसमान में पर फैलाए

मछली आज उड़ रही।

सपनों को साकार किए है,

मछली आज चल रही।


कहती तेरे जाल चीर मैं 

निलय को नाप ली हूँ,

कहती दृढ़ निश्चय कर मैं तो 

सागर चीर गई हूँ,


कहती दुश्मन राह में आए

पीछे कर निकली हूँ,

कहती सागर में आए 

तूफानों से उलझी हूँ।


नहीं कहो कि मछली हूँ तो

सागर में ही बैठूँ,

नहीं कहो कि मछली हूँ तो 

सपने ही न देखूँ,

भीतर भी पग हैं मेरे,

भीतर भी पंख हैं।


अश्रु न हैं अब भीतर; जो थें

सागर में मिल बैठे,

भाल मेरे अब तेज, इसे अरे!

तू ना देख सके।


आँंखों में बिजली बस बैठी,

सांस बनी तूफां है।

बंधन तोड़ेे, चीर वे निकली,

नया रूप शक्ति है।


चल सकती हूँ, उड़ सकती हूँ;

बाधाओं को चीर भी सकती।


रोक न मुझको, बांध न मुझको,

बंधन अब न सहूँगी,

तेज से मैं बन ज्वाला हर तेरे 

बंधन दग्ध करुँगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama