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Anita Sharma

Drama Tragedy

4  

Anita Sharma

Drama Tragedy

जोकर

जोकर

1 min
292


खचाखच भरे रंगमंच में

घना अँधेरा छा जाता है

उस अँधेरे में खोजदीप पड़ते ही

मेरा चेहरा...खिल जाता है

छुपाकर एक आम ज़िन्दगी को

मेरा नया चरित्र जाग जाता है

जो दिल ही दिल में लाख रोये


पर सबके चेहरे खिलाता है

सच कहूं ये तेज़ पड़ता प्रकाश

मेरे अंतस को चोटिल कर जाता है

क्यूँकि भूलकर खुद का चरित्र

मेरा अक्स जोकर बन जाता है!


ये बनावटी श्रृंगार बहुरंगी परिधान

कहाँ मुझे समझ आते हैं

मेरी रोज़ी का आवरण है ये

जो मेरी असलियत भुला देते हैं

गजब के ठहाकों में दबकर


मेरा क्रंदन मुस्कुरा जाता है

तालियों की गड़गड़ाहट में सुबककर

मेरा असल किरदार मर जाता है

हस्ती है तो मेरी…शून्य ही!

रोज़ बहरूपिया बना इठलाता हूँ

कभी कटाक्ष कभी व्यंग्य सुनकर

मैं रहस्य से पर्दा उठाता हूँ,


देखलो मेरी ज़िन्दगी एक त्रासदी है

मैं कब किसको बयां कर पाता हूँ

ज़िल्लत उठाता आँसू छुपाता

मैं एक पल का नायक बन जाता हूँ

मेरी ज़िन्दगी...एक त्रासदी सी

मैं कब...किसको यहाँ बताता हूँ


ज़िल्लत में रहकर आँसू पीकर

रोज़ एक नायक बन मुस्कुराता हूँ

जीता हूँ...कितने सपने मारकर

खुशियों के...मैं भी लायक हूँ,

मेरे चाहने वालो...खुलकर हँसलो,

मैं जोकर...इस रंगमंच का नायक हूँ !


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