सँघर्ष से पनपा हूँ
सँघर्ष से पनपा हूँ
आंसुओं से लिखा हूं
लहू पे सजा हूं
सरल नहीं सफ़र मेरा
हां यातनाओं से जन्मा हूं
खूबसूरत नहीं मैं
राखों पे पला हूं
उंगलियां झुलसे है अनल में फुटटे से
मैं अंगारों में तराशा गया हूं
लोग डरते आंख बंद कर
जिस अंधकार से
हां मैं
उनमें खेल बड़ा हुआ हूं
यूं ही नहीं कामिल बना
पाषाण जलते कंदराओं पे सोया हूं
हवाओं का रुख़ कहती दास्तां मेरी
मैं कवि बना नहीं बनाया गया हूं
ख्वाबों का गला रेत
तपते अंगारों पे
नंगे पांव चलाया गया हूं
यूं ही नहीं शब्द उकेर जाता
मैं मौत को छू के आया हूं।