सुना है
सुना है
सुना है
पढ़ा है
तेरी कविता में मेरा
कहीं न कहीं
जिक्र हुआ है
देखों न मेरी
आवारगी में तुम
छपा है तुम्हारा
स्पर्श छपा है
कैसे लिखूँ कितना
चाहूं में तुम्हें
ले जा जरूरत हो तोह
मेरी सांसें
इनमें महसूस होगी
मेरी चाहते
ले जा जरूरत हो तोह
मेरी सांसें
इनमें महसूस होगी
मेरी चाहते ......२
होते है न
सुबह शाम दोनों
जिंदगी का ये सफर है
सुख दुःख दोनों
इन फिजाओं में गूंजेगी
तेरी मेरी गुफ्तगू
तेरे पीछे मैं चलुंगा
जहां जायेगी तू
लेजा जरूरत हो तोह
मेरी सांसें
इनमें महसूस होगी
मेरी चाहते......२
पढ़ा है तेरी हाथों
की लकीड़ो में
तुम्हारा मेरा मेल लिखा है
जो ऐसा हो तो
क्या फ़िक्र अब तोह
चलो साथ साथ देखें
क्या होता है ।
साँस टूटने से पहले
मैं जी लूँ तुममें
ले जा जरूरत हो तो
मेरी सांसें
इनमें महसूस होगी
मेरी चाहतें.....२