मेरी कविताएं
मेरी कविताएं
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उसे याद कर लिखना चाहा कुछ तो
आँखों से ओस के जैसी ठंडी एक बूँद आँसू की टपक पड़ी
और पन्नो पे गाहे-बगाहे फैल गई
जिसे फिर कुछ लोगों ने कविता बोल तारीफों के खूब पुल बाँधे
विचित्र है न
हाँ मेरे लिये भी बहुत, खैर
इससे मैं ये तो समझ गया बखूबी कि
मेरी कविताएँ और कुछ नहीं बस
आँसू में घुली आख़िरी सिसकी की अवशेष मात्र है।