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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Tragedy Thriller Others

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क़लम-ए-अम्वाज kunu

Tragedy Thriller Others

कुछ नहीं हूॅं

कुछ नहीं हूॅं

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मैं जैसा हूँ, वैसा लिखता नहीं,

जैसा लिखता हूँ, वैसा हूँ नहीं।

दरअसल, मैं उन परछाइयों सा हूँ

जो रोशनी में आकार लेती हैं,

पर असल में उनका कोई अस्तित्व नहीं होता।


मेरा होना भी एक छलावा है,

मेरा न होना भी।

मेरा हँसता चेहरा

किसी नकाब सा झूठा,

मेरा रोता चेहरा

बिना आँसुओं का एक अभिनय।

मेरा झुका चेहरा

एक भ्रम की विनम्रता,

मेरा उठा हुआ चेहरा

घमंड की खोखली परिभाषा।


दरअसल, मैं अच्छाई और बुराई

के किसी एक पहलू में सिमट नहीं सकता।

मेरा "मैं"

अनगिनत संभावनाओं का एक समंदर है,

जो हर लहर में

कभी निर्मल, तो कभी उद्विग्न हो सकता है।


मैं एक ऐसी कथा हूँ

जिसके हर अध्याय में सच और झूठ

एक-दूसरे में लिपटे रहते हैं।

क्योंकि मेरा होना

एक विरोधाभास से सृजित है—

जहाँ मैं हर पल,

अच्छाई और बुराई,

दोनों का पर्याय हो सकता हूँ।


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