नजारे
नजारे
इस छोटी सी आँखों से
बड़े बड़े सत्य को देखा है
मैंने पिता को जाड़े में उघड़ बेटी के लिए दुल्हन का जोड़ा सिलते देखा है
जिसके अस्तित्व पे लटक
जो जमीन को तुच्छ समझते
मैंने उसी आसमान को जमीन पे उतरते भी देखा है ।
प्रेम देखा यथार्थ देखा
मैंने स्त्री के दामन कालांतर से चल रहे उन शोषण को देखा है
जिसमें उसके अस्तित्व को
भ्रम के जाल में फसा पवित्र और अपवित्र में बाँट जाते
मैंने उन तमाम चीखों को
सुना है
जो अपेक्षा को चूम न्याय और उत्तर को ढूंढने
आजीवन एक मृत भ्रूण बन रह जाती ।
मैंने देखा है ऐसे एक सत्य को जो है मो
क्ष की राहें
मैंने देखा है एक प्रेमी प्रेमिका को आँखों से चूम ईश्वर होते
कहते हो स्त्री को रजोधर्म में अपवित्र तुम
मैंने देखा है उसी के शीतलता में जीवन को अंकुरित हो
एक जिम्मेदार तना बनते ।
मैंने पढ़ा यथार्थ क्या है और
जाना धर्म का अभिप्राय
लहू भी छलकने
के काबिल नहीं
एक ऐसी खौफ का मंजर भी है
प्रेम का दिया बुझा मैंने देखा संसार का सबसे क्रूर सत्य जहां धर्म ,
इंसानियत खुद शैतान भी नतमस्तक है
क्योंकि
वो है पुरुष पे किया जा रहा वर्षों का अत्याचार
जो सुन भी अनसुनी है
और दिखाई दे कर भी
सिर्फ एक काली परछाई है ।