द्रौपदी स्वयंवर
द्रौपदी स्वयंवर
द्रौपदी स्वयंवर की गाथा आज गाते हैं।
एक विरांगना की कहानी गुन गुनाते हैं।।
द्रुपद का दरबार आज सजा बड़ा सुंदर है।
द्रौपदी वरण को जनपदों से राजकुमार आते हैं।।
महाराज द्रुपद की शर्त कुछ अनोखी है।
विडम्बना अपनी वो सबको सुनाते हैं।।
प्रतियोगिता शुभारंभ कुछ इस तरह किया गया।
कोई भी महारथी धनुष उठा ना पाते हैं।।
इस हृदय विदारक दृश्य से द्रुपद दुखी हो गए।
वीरों की असफलता देख स्वयं को कोषते।।
महाराज द्रुपद की चुनौती को सुनकर स्तब्ध हुए।
असफलता से लज्जित चेहरा छुपाते हैं।।
द्रौपदी ने भरी सभा में सूत पुत्र बुला दिया।
कर्ण फिर शर्म से मस्तक झुकाते हैं।।
वासुदेव कृष्ण ने फिर अर्जुन संधान किया।
स्वयंवर सफलता हेतु पार्थ को बुलाते हैं।।
अर्जुन ने धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ा लिया।
द्रौपदी की खुशी देख अर्जुन मुस्काते हैं।।
मछली की आंख को निशाना लगा दिया।
द्रौपदी स्वयंवर को अंजाम तक पहुंचाते हैं।।
द्रौपदी वरण कर निज आश्रम चल दिए।
मां कुन्ती से द्रौपदी को मिलाते हैं।।
माता ने द्रौपदी को वस्तु जैसे बांट दिया।
द्रौपदी है नाम जिसका उसे पांचाली बुलाते हैं।।
