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Abhi Sharma

Others

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Abhi Sharma

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मोहब्बत

मोहब्बत

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तबाही से सना कोई लहर गया।

मानो वक्त जैसे कोई ठहर गया।।


लिखने बैठा था ग़ज़ल मोहब्बत की।

ख्याल से उसके मिसरा बिखर गया।।


इक रोज काटा था नफरत ने मुझे।

तेरे छूने से उतर सारा ज़हर गया।।


बसाने गया था आशियाना मोहब्बत का।

देखा तो लगा उजड़ सारा शहर गया।।


तुझसे बिछड़कर बिखर गया था मैं।

नुज़ूल-ए-रहमत से गुजर मुश्किल पहर गया।।



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