मोहब्बत
मोहब्बत
यहां तवायफ को सब बुरा कहते यहां।
ना आसमां से कोई आते यहां।।
राय गैरों पर यहां सब देंगे अपनी साहब
बात अपने पे आए तो चुप रहते यहां।।
चढ़ा रखा है मोहब्बत में सर पर उसे।
यूं ही थोड़ी अपना हक जताते यहां।।
मेरी रूखी सी जिंदगी को रौशन तो कर
मुझ पर अंधेरों का इल्ज़ाम लगाते यहां।।
कुछ घर की जिम्मेदारियों होती है साहब
क्यों हर लड़की को बेवफ़ा बताते यहां।।
क्या साथ रहना ही मोहब्बत है ज़माने में
चाहतें यहां दूरियों में भी कुछ निभाते यहां।।
क्यों कहूं भला बुरा मैं उसको बता मुझे।
ज़माने में मज़हब भी बीच में आते यहां।
क्यों बंदिशों में रखते हो मोहब्बत अपनी।
यूं दिखावे का हक क्यों जताते यहां।।
यादों को तेरी अब तक सम्भाल रखा है
जानें क्यों तस्वीरें पुरानी जलाते यहां।।
