इश्क
इश्क
इश्क में जाने क्या क्या होते देखा है।
किसी ने पाया बहुत किसी को सब कुछ खोते देखा है।।
इश्क में सच्ची मोहब्बत को ठुकराते देखा है।
दिल तोड़ उस बेदर्द को मुस्कराते देखा है।।
ना जाने कितनो को बिन मंजिल रुकते देखा है।
इश्क में बड़े बड़े नवाबों को झुकते देखा है।।
कितने मुलाजिम कितनी सरकार बदलते देखा है।
इश्क में बड़े बड़े घर बार उजड़ते देखा है।।
सच्ची मोहब्बत का किस्सा किताबों में लिखा देखा है।
मासूम शक्ल वालों को वादों से मुकरते देखा है।।
उसे कभी इसकी कभी उसकी दिवानी होते देखा है।
उसे गैरों पर कितनी मोहब्बत लुटाते देखा है।।
मैंने हर सपना बिखरते देखा है हर वादा टूटते देखा है।
मैंने हर गैर मिलते देखा है हर अपना रूठते देखा है।