मोहब्बत
मोहब्बत
तू जो पत्थर बने तो मूर्त बनाऊं।
तू बने इंसान तो खूबसूरत बनाऊं।।
तुझे सजदे में मांगा तुझे मन्नत में चाहा।
मोहब्बत में तेरी मैं खुदा भुलाऊँ।।
तेरे इश्क़ में मज़हब भुला दिया मैंने।
पाने को तुझे मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे जाऊं।।
हर जन्म में मिले तू मुझे मैं तुझ मिलूं।
इससे ज्यादा खुदा से कुछ ना चाहूं।।
जिस्म मैं तो जान तू है इसकी।
तेरे बगैर मैं कैसे जी पाऊं।।
वादा रहा ना बिछड़ना अब तुझसे।
रिश्ता अपना शिद्दत से निभाऊं।।
परेशान करता है ये धड़क के मुझे।
इस पागल दिल को कैसे समझाऊं।।
हर रोज़ बहलाता हूं झूठ बोलकर इसे।
नाराज़ है मुझसे इसे कैसे मनाऊं।।