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V. Aaradhyaa

Romance

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V. Aaradhyaa

Romance

झूले पड़े सावन के

झूले पड़े सावन के

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झूले पड़े सावन के , सखियॉं झूल रहीं।

साजन गए परदेस, अखियॉं ढूॅंढ रही।।


तारे गिनगिन रैना बीते, लोचन लोच रहे।

नैन बिछाए पलकें पथ में, छप छप अश्रु बहे।।

ज्वाला धधके नित विरह की, काया झुलस रही।

साजन मेरे भए परदेस, अखियॉं ढूॅंढ रही।।


पावस बरसे रिमझिम- रिमझिम, बादल नाच रहे।

पागल पुरवा अंग जलाए, धड़कन तेज कहे।।

हार शृंगार फीके लगते, रातें जाग रहीं।

साजन मेरे भए परदेस, अखियॉं ढूंढ रही।।


होंठ गुलाबी सूख रहे हैं, फीके गाल बड़े।

लटें घनेरी बिन सॅंवरें ही, विषधर जान पड़े।।

काली बदली घिर-घिर बरसे, तन-मन छेड़ रही।

साजन मेरे भए परदेस, अखियॉं ढूॅंढ रही।।

सावन के झूले खूब पड़े, सखियॉं झूल रही।

साजन मेरे भए परदेस, अखियॉं ढूॅंढ रही।।



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