रचनाकार का अश्क़
रचनाकार का अश्क़
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मेरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे
दर्द में भी मुस्कान लाऊँ, ये हुनर मेरा
चाँदनी रात में छिपे बादल का असर मेरा
तुम्हारी याद में बहते अश्कों की बूँदें
मोहब्बत के दरिया में खो जाती हैं, अनसुनें
ख्वाबों में जो देखा, हकीकत में पाऊँ न
सपनों के इन बंधनों से निकल पाऊँ न
तुम्हारी आँखों में बसी है मेरी चाहत
हर दिन ढूंढता हूँ, पर मिलती नहीं राहत
तुम्हारे बिना ये जिन्दगी, अधूरी है मेरी
हर सांस तुम्हारी खुशबू से महकती है मेरी
दिल के वीराने में बसा है तुम्हारा प्यार
तुम्हारे बिना ये जीवन लगता है बेकार
सूरज की रोशनी में भी अंधेरा दिखता
है
तुम्हारी याद में ही दिल मेरा धड़कता है
तुम्हारे कदमों की आहट से दिल ये बंध जाता
तुम्हारी मुस्कान से सारा जहां खिल जाता
आओ लौट आओ, मेरी ज़िन्दगी में फिर से
तुम्हारे बिना ये दिल सूना है, तुमसे
वफा की राहों पर कदम-कदम चलूँगा
तुम्हारी मोहब्बत में हर सांस जिऊँगा
मजनूँ की मोहब्बत की तरह है मेरा हाल
लैला की तन्हाई में ढूंढता हूँ अपना ख्याल
तुम्हारे बिना ये चांदनी रातें बेनूर हैं
तेरी आँखों में जो देखा, वही तो हुज़ूर हैं
मोहब्बत की इस राह में साथ चलो मेरे
तुम्हारे बिना ये जीवन अधूरा है मेरे
लौट आओ, मेरे प्यार को साकार करो
इस दिल की धड़कन को तुम अपनाओ, संवारो।