चिराग
चिराग
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
हवा के ख़ौफ़ से बुझते नहीं चराग़ कभी
कभी भी चोट से उजला धुआँ नहीं होता
भरोसा रखिए सहर होने तक, अंधेरों में भी,
उदास रात का कोई भी ग़म जहाँ नहीं होता
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा,
मगर तुम्हारी तरह कौन मेहरबाँ नहीं होता
मुझे चिराग़ समझकर बुझा रहे हो क्यों,
मेरे हक़ीक़तों से आपका वास्ता नहीं होता।
