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Priti Shah

Inspirational

4  

Priti Shah

Inspirational

हाउस वाईफ

हाउस वाईफ

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बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।

सुबह - सवेरे सबसे पहले उठ जाती हूँ।

बाद मैं टीफीन बनाकर बच्चों को स्कूल

और पति को ओफिस भेजती हूँ।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


सारा धर साफ-सुथरा करके,

फिर से दोपहर की रसोई में जुट जाती हूँ।

सब खुश हो जाए ऐसा शाम को क्या बनाऊंगी ? 

ये सोचकर पूरा दिन परेशान रहती हूँ।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


घर में किसी की भी तबीयत बिगड़ जाये

तो मैं ही डाक्टर बन जाती हूँ ।

धरेलु नुस्खों से ठीक करने की कोशिश करती हूँ।

वक्त आने पर अस्पताल में भर्ती करवा के

जल्द ही ठीक हो जाये एसी प्रार्थना करती हूँ।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


किसी के भी देर से आने पे व्याकुल हो जाती हूँ।

फिर भी चेहरे के भाव को बदलने नही देती।

अंत में कांपते हाथों से फोन घुमा ही देती हूँ। 

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


कहीं कुछ छोटी - सी गलती भी हो जाए तो खुद को

गुनाह के कठघरे में खड़ा कर देती हूँ।

और न्याय की कुर्सी पर बैठकर खुद को सजा भी सुना देती हूँ।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


जब घुटनों में दर्द का अहसास हुआ

तब पता चला की मैं उम्र के किस मोड़ पे खड़ी हूँ। 

फिर सोचती हूं, मेरी इतनी सारी उम्र कहाँ चली गयी ?

कब चली गयी ? मुझे कुछ पता ही नहीं चला ?

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


तब मेरे भीतर से एक आवाज आई, 

तूने, सिर्फ तूने ही गँवा दी हे ये उम्र,

और अब पूछती है इतने सारे सवाल ?

मैं तिलमिला उठी, क्या मैंने गँवा दी ?

मन-मस्तिष्क दोनों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा है।

एक कहता है हाँ, हाँ, तूने ही गँवा दी है।

अपने लिए चौबीस धंटो में से

दस मिनिट भी निकाली होती तो ?

दूसरा कहता है फिर मेरे धर - परिवार -

बच्चों का खयाल कौन रखता ?


अरे, तूने वक्त पे खाना खा लिया होता,

वक्त पे सो लिया होता ?

थोड़ा वक्त तो अपने आपको दीया होता ?

बस, तू कुछ और कर भी नहीं सकती ,

क्योंकि तू एक हाऊस - वाईफ है।


अरे, जा, जा, तुझे तो सिर्फ बोलना है।

घर आये मेहमान का भी तो खयाल रखना पड़ता है।

सामाजिक व्यवहारों को भी तो सम्हालना पड़ता है।

अरे, तुझे क्या मालूम सारे रिश्ते- नाते बखूबी निभाने पड़ते है।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूँ।


हा, हा, सारे रिश्ते-नाते निभा पर, 

खुद से खुद का रिश्ता निभाना क्यों भूल गई ?

तूने तो निभा दिए पर क्या उन रिश्तेदारों को लगता है,

की तुझे रिश्ते निभाना आता है ?

जिसके लिए तूने अपने आपको नजर - अंदाज किया

क्या वो लोग समझ पायेंगे तुझे ?

बस, तू कुछ और कर भी नहीं सकती

क्योंकि, तू एक हाऊस वाईफ है।


चाहे जो हो पर, खुशी है मुझे इस बात की

सारे रिश्ते नाते निभाये मैंने बखूबी।

दोनों अपनी अपनी जगह पर सही थे।

अंत में दोनों एक ही बात पर सहमत होते है।

मैं भी चिल्लाकर यही कहती हूं।।

और भीतर से भी यही आवाज आ रही है।

बस, मैं ज्यादा कुछ नहीं करती,

क्योंकि मैं एक हाउस वाईफ हूं।

                      

                  



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