सीख गई हूं मैं
सीख गई हूं मैं
छोटे- छोटे क़दमों की सफर को,
बड़ी- बड़ी मंजिले देना ,
सीख गई हूं मैं।
उन मंजिलों को मुकाम देने को,
अंधेरों से जूझना,
सीख गई हूं मैं।
अंधेरों से लड़ते- लड़ते,
उजालों की तस्वीर बनाना,
सीख गई हूं मैं।
उजालों की छाया में,
जीवन की तकदीर लिखना,
सीख गई हूं मैं।
सारी दुनिया की हलचल को छोड़कर,
स्वयं को स्वीकारना,
सीख गई हूं मैं।
कभी गिरकर, कभी संभल कर,
सितारों सी चमकना,
सीख गई हूं मैं।
सितारों सा चमकना
सीख गई हूं मैं ।।