प्रश्न
प्रश्न
मेरा प्रश्न सुनते ही घबरा गया एक पाठक,
प्रश्न था साधारण, लेकिन सुनते ही शुरु किया नाटक |
प्रश्न सुनकर मुस्कराया, थोड़ा घबराया, फिर हिचकिचाया,
मैंने कहा- आपका उत्तर तो देना बनता है,
अपने ही लोग हैं, अपनी ही जनता है |
बात उठी है तो पूरी भी होनी चाहिए ,
सभा की शालीनता भी न खोनी चाहिए |
घिर गया वो अपने ही बुने जाल में,
ऐसे वक्त को सोचा न होगा ख्याल में |
अब बात आती है कि था क्या प्रश्न,
कौन था पाठक, कौन था प्रश्नकर्ता |
अरे साहब ! आधुनिकता की परिभाषा न जान सकी मैं
मैं ही थी पाठक और प्रश्नकर्ता मैं |
प्रिय पाठकों, आप ही सबाल का उत्तर दीजिए
मेरे प्रश्न की दुविधा मिटा दीजिए |
क्या यही शिक्षा का मापदण्ड रह गया विद्यालय में ?
प्रथम गुरु(माँ) को छोड़ आओ वृद्धाश्रम में ?