लेखिका की कलम
लेखिका की कलम
तुम शब्द कहते हो मैं गजल लिखती हूँ
कागजों पर अपने जज्ज्बात लिखती हूँ,
मैं लेखिका हूँ जनाब,
हर समस्या पर अपने विचार रखती हूँ।
कभी पाती हूँ तारीफ,
कभी आलोचना भी सहती हूँ।
किसीके लिये परेशानी, तो
किसी के लिये समाधान बनती हूँ।
कभी प्यार के एहसास,
तो कभी करारा जवाब लिखती हूँ।
मैं लेखिका अपनी कलम से
हर किरदार में जान भरती हूँ।
कभी जमीन की गहराई,
कभी आसमान की उड़ान लिखती हूँ।
कभी ढलती सिंदूरी शाम की उदासी,
कभी नारंगी जोशीली भोर लिखती हूँ।
अपनी कलम से चूल्हे की राख से लेकर,
तपते अंगार लिखती हूँ।
