सबक
सबक
अपने जीवन में कुछ यूं उलझा था,
समाज से ना कुछ मेरा लेना देना था।
जो अपने थे उनसे भी सिर्फ मैं दूर से जुड़ा था,
चाचा,बुआ ताऊ को ना बच्चे ने कभी जाना था।
खुश था मैं बच्चा मेरा हमेशा अव्वल आता था,
ना उसे किसी से मतलब ना किसी और से उसका नाता था।
मैने भी तो हमेशा उसे बस खुदके बारे में सोचना सिखाया था,
"अपने सपनों के बीच ना किसी को आने देना" ये बतलाया था।
आज मेरा बच्चा बहुत आगे बढ़ गया
छोड़ के अपना घरौदा महलों में बस गया।
पीछे रह गई हम मां बाप की दर्द भरीं आहें,
ये काश मेरा बच्चा कभी पलट कर इक निगाह हम पर डाले।
पर अब लगता ये एक सपना है ,
परवरिश मैने ही ऐसी दी तो किसी से क्या शिकवा गिला है।
अब बस अकेले इस वृद्धा अवस्था में जीवन यापन करने की कोशिश कर रहा हूं,
मुझे देख सबक ले ले ये दुनिया इसलिए हर आने जाने वालो से
फलों के साथ अपना अनुभव शेयर कर रहा हूं।