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Anita Sharma

Tragedy Action Fantasy

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Anita Sharma

Tragedy Action Fantasy

जाड़े की धूप और बहू

जाड़े की धूप और बहू

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गांव में जाड़े की धूप भी कितनी सुहानी होती है,

सुबह से सबको आंगन में अपने आगोश में बुला लेती है।

पूरा परिवार लेता मजे इस सुनहरी धूप के

साथ में भजिए पकौड़ी और चाय की मांग होती है।

कभी बनता है खेत से आया सरसों का साग

तो कभी मिट्टी के चूल्हे पर बाजरे ज्वार की 

गरमा गरम रोटियां सिकतीं हैं।

सब लेते हैं सर्दियों के मजे पर बहू की दो आंखें 

इक कतरा धूप को तरसतीं हैं।

सुबह सबेरे नहाकर गीले बाल बांध लग जाती है रसोई में

भजिए पकौड़ी तलने को फिर जल्दी-जल्दी साग साफ करती है।

बनाने को रोटी जलाती है चूल्हा उसके धुएं में 

ही अपनी भावनाओं के आंसू वो मसलती है।

शाम होते होते कोने की उस ढलती धूप में

बर्फ से ठंडी हथेलियों को गर्म करने की तपिश ही कहां बचती है,

फिर भी रात को रजाई में दुबके परिवार के कुछ लोगों कि

खुसर फुसर में बुराई उसी बहू की निकलती है।



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