पैसों के बिन फीका-फीका लगता है त्यौहार
पैसों के बिन फीका-फीका लगता है त्यौहार
पैसों के बिन फीका फीका लगता है त्यौहार।
साल में है इक बार ही आता ये सारा त्यौहार।।
गया दशहरा जैसे तैसे
अब आ गई दीवाली
यह प्रकाश का पर्व है
लाए समृद्धि खुशहाली।
कैसे दूं अपने लोगों को मैं कोई उपहार।
पैसों के बिन फीका फीका लगता है त्यौहार।।
लाले जहां पड़े खाने को
वहां जलाएं कैसे दिये
कपड़े मिठाई और पटाखे
कैसे लूं बच्चों के लिये।
लाना होगा दिया तेल और घर के तोरण द्वार।
पैसों के बिन फीका फीका लगता है त्यौहार।।
अबकी बार बचाकर पैसे
मैं रखूंगा पहले से
साज सजावट रंग पुताई
करवाऊंगा पहले से।
अबके साल तो बीत गया देखूंगा अगली बार।
पैसों के बिन फीका फीका लगता है त्यौहार।।
ऊपर वाला भी निष्ठुर है
सुनता नहीं मेरे दुखड़े
आता है जब पर्व कोई तो
दिल होता टुकड़े टुकड़े।
कब गरीब के भाग्य खुलेंगे भरेगा कब भंडार।
पैसों के बिन फीका फीका लगता है त्यौहार।।