प्रायश्चित
प्रायश्चित
अपने खूबसूरत बालों को,
कुछ पलों में काट दिया,
तेरे साथ गुजारे लम्हों में,
हमने खुद को बाँट दिया।
कुछ भूल अंजाने में,
कुछ जान के कर बैठे,
तेरी बहकी बातों में,
अपना दिल भी खो बैठे।
सुबह जब आँख खुली,
अजब बेचैनी ने दस्तक दी,
अपनी नासमझी पर हमने,
खुद से खुद को नसीहत दी।
नम आँखों ने खुद को कोसा,
क्यूँ कर बैठे हम भरोसा ?
ऐसी भी क्या मजबूरी ?
जो हमने खुद को यूँ परोसा।
अपने खूबसूरत बालों को,
कुछ पलों में काट दिया,
तेरे साथ गुजारे लम्हों में,
हमने खुद को बाँट दिया।
तू पूरा हमको चख ना पाया,
हुआ किस्मत का खेल निराला,
मगर फिर भी इस दिल को,
प्रायश्चित की आग ने मारा।
हम हँसते रहे ऊपर ही ऊपर,
मगर जलते रहे अंदर छिपकर,
ऐसी गलती फिर से ना हो,
जिसमे हम ना उठ पायें गिरकर।
बिछड़ने की जब घड़ी आई,
तन से ज्यादा थी मन में तन्हाई,
हमने अपना सर्वस्व देकर भी,
प्रायश्चित करने की कसमें खाईं।
अपने खूबसूरत बालों को,
कुछ पलों में काट दिया,
तेरे साथ गुजारे लम्हों में,
हमने खुद को बाँट दिया।
जिन बालों ने थी आग लगाई,
जिस रुप ने दी ऐसी दुहाई,
हमने उस सबको न्योछावर कर,
अपने मन की अगन बुझाई।
खुद को खुद के लिए मिटा,
मत कर दूसरे से कोई गिला,
दोष दूसरे में तब खोजे,
जब पहले खुद को खूब तपा।
आज भी तपन होती है हमे,
गलत - सही के भेद में,
हम कैसे यूँ बहक गये ?
इस प्रेम अगन के खेल मे।
अपने खूबसूरत बालों को,
कुछ पलों में काट दिया,
तेरे साथ गुजारे लम्हों में,
हमने खुद को बाँट दिया।।