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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

बदनाम

बदनाम

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बहुत बदनाम है वो गलियां वहां मैंने कुछ देर ठहर के देखा है। 

बोलियां लगती है उनकी उन्हें मैंने सर-ए बाज़ार बिकते देखा है।। 


सजी है हर उम्र की डाली पे कलियां उन्हें लोगों के हाथों तोड़ते देखा है। 

मसल कर रख दिया गया उनका वजूद उन्हें मैंने ज़ार- ज़ार रोते देखा है।। 


कदम कदम पर है नर्क के द्वार उन में मैंने सज्जनों को आते जाते देखा है।

दम घुटते अरमानों का आलम मैंने उनकी आंखों में आह बन बरसते देखा है।।


जो गिरते हैं अंधेरों में उनके पैरों पे उजालों में उनको तिरस्कृत करते देखा है। 

तेरी दुनिया का अजब यह किस्सा है स्त्रियों को मैंने यहां वेश्या बनते देखा है।। 


चाहत का नहीं है कोई रिवाज वहां बदन का सौदा करते लोगों को देखा है। 

चंद घंटे का बनता है रिश्ता फिर उसका खून होते मैंने इन आँखों से देखा है।।


बहुत बदनाम है वो गलियां वहां मैंने कुछ देर ठहर के देखा है। । 



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