मजदूर
मजदूर
कौन है ये परेशान हर तरफ भटकता मारा मारा
भूख से बेहाल,पसीने से तरबतर, पैर मे छाले है
और काम करते खून का पानी बनाकर दुनिया बनाने वाले ये कौन है?
दो जून की रोटी के लिए सुबह से शाम तक
तपती दोपहरी मे सूरज की किरणों को ललकरता कौन है ?
न अपनी फिक्र नहीं शरीर की चिंता थोड़ी
फ़टे कपड़ो मे जी लेता है कम खाकर पानी पीकर पेट भर लेता है वो कौन है ?
कमर में एक कपड़े से बांधे हुए पेट में बच्चा लिए
सर पर रेत इटे ढोती महिला कौन है ?
मजदूरी से दुनिया का आशियाना बनाने वाले
खुदकी ज़िन्दगी मे भटकाव बस यहां से वहा चलते रहे वो कौन है ?
अपने दर्द को हँसकर भुला देते है जो पूरी दुनिया का भार
अपने कंधे उठा लेते है ये लोग कौन है ?