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Anupam Meshram

Tragedy

4.0  

Anupam Meshram

Tragedy

कहानी -आखिरी कॉल

कहानी -आखिरी कॉल

4 mins
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आज पहले ही की तरह सुमित वक़्त से सुबह उठ गया उसे मालूम था आज उसे फिर से इंटरव्यू के लिए जाना है।

लगातार 5 महीनों के बाद तो ये सब हो रहा था ज़ब लॉक डाउन लगा तो उसकी नौकरी भी चली गयी थी

वह बड़ा ख़ुश था के चलो आखिर 5 महीनों के बाद ही सही अब उसे नौकरी के लिए फोन कॉल्स आने तो शुरू हो गए।

महीनों से हाथ में न रोजगार था ना पैसा जो बचा था पास उधार लिया दोस्तों का उससे पेट भर जाये बहुत था।

हर बार एक नई किल्लत उसके सामने आकर खड़ी हो जाती।

 एक तरह लगातार 5 महीनों से नौकरी नहीं उसकी टेंशन अलग दूसरी तरफ घर पर बूढ़े माँ बाप ही है जिनका सहारा सुमित के अलावा कोई दूसरा नहीं दोनों सिर्फ दवाई के सहारे दिन गुज़ार रहे।

उसपर सुमित की नौकरी का चले जाना किसी समझदार ज़िम्मेदार इंसान के लिए इतना सब एकसाथ झेलना किसी सदमे से कम न था, लेकिन वो करता भी तो क्या बस इंतज़ार करता रहता जैसे भी ये बुरे दिन गुज़र जाये और सब पहले जैसा हो जाये लेकिन ऐसा कब होता है।

लगातार 2 महीने होने चले थे सुमित को इंटरव्यू देते हुए लेकिन नौकरी की बात कही नहीं बनी बड़ी से वो हर बार इंटरव्यू के लिए जाता लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती उसे अगस्त से अबतक जाने कितने इंटरव्यू दिए सुमित ने लेकिन कही भी उसकी बात नहीं बनी कही भी कोई नौकरी नहीं मिली।

अब तो उसे चिंता सताने लगी थी के रूम का रेंट खाना पीना कहा से और कैसे होगा।

सोचता और परेशान रहता एक जिम्मेदार इंसान जब बेरोजगार हो उसे महसूस होता है दर्द तकलीफ क्या होती है मानसिक अलग और शारीरिक अलग।

आज फिर बड़ी ख़ुशी के साथ गया था इंटरव्यू देने लेकिन आखरी में उसे निराशा ही हाथ लगी।

उसे समझ न आ रहा था क्या करें किससे मदद की गुहार लगाए कुछ दोस्त भले थे जो कभी उसकी मदद के लिए सामने भी आते थे लेकिन बार बार मदद मांगने के चलते उन्होंने भी सुमित से दूरियां बना ली थी।

अब दूर तक कोई नहीं था जो उसकी मदद के लिए सामने आता घर के हालत पहले ही खराब थे क्यों की घर पर कमाने वाला कोई नहीं था तो सारी ज़िम्मेदारियाँ भी सुमित के कंधे पर ही थी और घर के हाल सुमित से छुपे नहीं थे शायद इसीलिए जब लॉक डाउन में जब सुमित के सारे दोस्त घर चले गए लेकिन सुमित वही रुका रहा उसे लगा धीरे धीरे ही सही सब अच्छा हो जायेगा लेकिन वास्तविकता कुछ और ही थी।

एक तरफ लगातार कंपनियों के रिजेक्शन और बेरोजगारी के चलते अब वो अंदर तक टूट चूका था शायद उसे अब ये एहसास हो चूका था ज़ब अबतक नौकरी नहीं मिली तो अब क्या मिलेगी अब उसने अपनी पढ़ाई से विपरीत घर के खर्च चलाने के लिए सोचा कुछ और काम कर ले लेकिन उसे पढ़ा लिखा है क्या मेहनत का काम करेगा सोचकर उसे मना कर देते और वो चुप हो जाता।

अब सुमित खुद से हार गया था सुमित स्वाभिमानी तो था ही जब कोई एकबार मना कर देता तो वापिस से कभी उसे कोई कैसी मदद के लिए नहीं पूछता था और अब तो ख्याल भी नहीं लाता।

वो पहले तो मदद के लिए कॉल भी कर लेता लेकिन दोस्तों के बदलते व्यवहार के चलते उसने अब उसने भी कॉल करना छोड़ दिया क्यों की सबको मालूम था सुमित बेरोजगार है पैसे कैसे वापिस मिलेंगे फिर यही एक वजह थी अब दोस्तों ने उसका कॉल लेना भी बंद कर दिया था

पहले तबीयत खराब होती तो बता भी देता अपने दोस्तों को लेकिन अब किसे बताता कौन था उसकी तबीयत पूछने वाला और आज फिर से लगातार परेशान और बहुत अधिक सोचने के चलते सुमित के तबीयत खराब हो गयी उसने एक के बाद एक अपने सारे दोस्तों को कॉल किया कोई कॉल नहीं उठाया और मायूस होकर सुमित ने अपनी ज़िन्दगी से से खेल लिया अपनी ज़िन्दगी समाप्त कर ली. I

सार कहानी का - कोई भी कॉल हो जरूर लीजिये हो सकता है आपके लिए वो कॉल पहला है लेकिन ये भी हो सकता है जिसने आपको कॉल किया उसकी आखरी उम्मीद भी आप हो।



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