हिंदी की गाथा
हिंदी की गाथा
तेरी कोई भाषा नहीं तेरी कोई जुबान नहीं
तेरा कोई मजहब नहीं तेरा कोई जहां नहीं यह कहते हैं मुझसे मेरे ही चाहने वाले,
ये मेरे वतन वाले कैसे हैं वतन वाले मुझे मेरे ही घर से निकालते ये मेरे वतन वाले,
तेरा कोई धर्म नहीं तेरा कोई ईमान नहीं
तुझ में वह ममता नहीं तुझ में अब वह प्यार नहीं,
ये कहते हैं मुझसे मेरे ही मानने वाले ये मेरे वतन वाले कैसे हैं वतन वाले मुझको मेरे ही घर से निकालते ये मेरे वतन वाले,
तेरा कोई मान नहीं तेरा अब सम्मान नहीं कौन तुझे बख़्शेगा तेरा कोई भगवान नहीं,
ये कहते हैं मुझसे मेरे ही मानने वाले ये मेरे वतन वाले कैसे हैं वतन वाले मुझे मेरे ही घर से निकालते यह मेरे वतन वाले,
अपनों ने मुझको छोड़ा है गैरों ने खूब मरोड़ा है
क्या खता हुई थी मुझसे जो सबने नाता तोड़ा है,
ये कहते हैं मुझसे मेरे ही मानने वाले कैसे हैं वतन वाले मुझे मेरे ही घर से निकालते मेरे वतन वाले,
ये मेरे वतन वाले कैसे हैं वतन वाले मुझे मेरे ही घर से निकालते ही मेरे वतन वाले,
बांध दिया खूटे से लाकर जैसे मैं आवारा हूं
अपनों ने ही लूटा मुझको मैं किससे कहूं हत्यारा है
ये कहते हैं मुझसे मेरे ही मानने वाले
ये मेरे वतन वाले कैसे है वतन वाले
मुझे मेरे ही घरसे निकालते है मेरे वतन वाले l
