मेरी तन्हाई
मेरी तन्हाई
साया ही अपने से बात करता है
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले,
अपना साया ही अपने साथ होता है
कभी खुद दिल बच्चा बनकर मुस्कुरा लेता
हसीं ठिठोली कर लेता जाने कैसे कैसे जतन कर खुदको मना लेता,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है,
कभी बाप बन जाता है, खुदको मनाने के लिए अपना ही
कभी भाई बहन हर रिश्ते मे अपने आप को ढाल देता है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है,
बड़ा अजीब सा है ये ज़िन्दगी का सिलसिला
दूर होकर भी कब यादो का फासला कम होता है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है,
यादें आयी तो किसी की तन्हाई मे अक्सर आंखे भिगो लेता है,
सबसे छुपाकर दर्द अपने अंदर ही अंदर रो लेता है
मन बावरा सा है कहा दुसरो की तकलीफ देखकर फफक उठता है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है,
फिर भी चेहरे पर मुस्कुराहट बरकरार होती है कब नादान ये कहा
अपनी सुध लेता है न गिला कोई इसे न किसी से शिकवा कभी होता है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है,
हर बार समझौते हर कदम अपनी खुशियाँ ही धूमिल करना पड़ता है
सबकी खुशी से अपने आप को ख़ुश रखना है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता है
खुशियाँ दे हर किसी को अपनों को बेगानों को चाहता है क्या करें
बहुत कुछ ख्याल भी बहुत मगर कभी वक़्त हालात दग़ा देते है,
ज़ब कोई नहीं होता साथ तन्हाई मे अकेले
अपना साया ही अपने साथ होता हैl
