कविता -कुदरत
कविता -कुदरत
छेड़ मत कुदरत को ऐ नादान इंसान
तू न कुदरत के पहले कुछ था न कुदरत के बाद कुछ है
तू है ही कौन तेरी हस्ती क्या है जो कुदरत से आंख भी मिला,
सुनामी तबाही हाहाकार मचा है चहु ओर
कही भयंकर बीमारियों ने घर पसार लिया
मौतो का अम्बार पड़ा जैसे मौत नहीं मेले का त्यौहार लगा ,
कितनो ने जाने अपनों को खोया
कितने अपनों से बिछड़ गए
मान जा कही ये सब भूल तेरी है इंसान,
तूने कुदरत को छेड़ा कुदरत ने तुझे उसका ये सिला दिया,
अब भी वक़्त है अपनी हरकतों से बाज़ आ,
जीव हो या वृक्ष मार मत इन्हे जैसे तू धरती पर वैसे इनका भी अपना अस्तित्व है अलग,
सुधर जा कुदरत की हर चीज अनमोल है,
उसकी रक्षा कर संरक्षण कर वरना उससे छेड़खानी मत कर,
बचा नहीं सकता कुदरत को तो उसे नुकसान भी मत कर,
वरना अंजाम सामने है तेरे त्राहि त्राहि मची है दुनिया मे हर तरफ,
पता नहीं आज जैसा है कल शायद होगा न होगा,
तूने कुदरत को नहीं बचाया तो शायद इंसान कल तू भी नहीं होगा,
कुदरत को बचाये चाहे वृक्ष हो या जीव सब प्रकृति की धरोहर है उन्हें नुकसान मत पहुचाये l
