विपदा
विपदा
चौराहे पे खड़ा शख्स
ना जाने कब से क्या सोच रहा,
खुद को जहां के नाकाबिल समझ
शायद वो पछता रहा।
बेपरवाह बेतरतीब लोग
आपस में विचारों से है टकरा रहा,
कभी बेशउर लोगों के हुजूम को
तो कभी अपने अंदर झांक रहा।
चौराहे पे खड़ा शख्स
ना जाने कब से क्या सोच रहा,
खुद को जहां के नाकाबिल समझ
शायद वो पछता रहा।
ये कैसी विपदा है
कैसा है ये जुनून,
आदमी के पीछे आदमी
हर एक के लिए गड्ढा खोद रहा।
चौराहे पे खड़ा शख्स
ना जाने कब से क्या सोच रहा,
खुद को जहां के नाकाबिल समझ
शायद वो पछता रहा।