ज़रूरत नहीं मुझे
ज़रूरत नहीं मुझे
ज़रूरत नहीं मुझे तेरे इन झूठें वादों की,
जिसे निभाना तुझे आता ही नहीं।
ज़रूरत नहीं मुझे तेरे इस रिश्ते की,
जिसे सम्भालने की ज़िम्मेदारी बस मेरी है, लेकिन तेरी नहीं।
ज़रुरत नहीं तेरे इस नाम के बंधन की,
जिसमे प्यार तो नहीं,लेकिन प्रतिबंध हज़ारों है।
ज़रुरत नहीं तेरे इस फ़र्ज़ी प्यार की,
जिसमे मेरा कोई वजूद ही नहीं।