क्या मैं काफ़ी नहीं?
क्या मैं काफ़ी नहीं?
इस बेवफा सी दुनिया में वफ़ा निभाती हुँ मैं,
झूठों की इस महफिल में सच बोलने की हिम्मत रखती हूं मै,
नफ़रत से भरी भीड़ में भी दिल में प्यार रखती हूं मैं।
फिर भी, क्या मैं काफ़ी नहीं?
हर किसी में अच्छा देखने का हुनर रखती हूं मैं,
गुस्से में भी किसी का दिल न दुखाने का ध्यान रखति हूं मैं,
अधीरता में भी धीरज रखने की कोषिश करती हुँ मैं।
फिर भी, क्या मैं काफ़ी नहीं?
एक क़ीमती भरी उपहार से इन्सान ख़रीदने वाली दुनिया में,
अपनी अनमोल रूह देने का वादा करती हूं मैं,
खुद से जुडी हर चिज तेरे नाम करने की हिम्मत रखती हूं मैं।
क्या फिर भी, मैं काफ़ी नहीं?