जिंदगी की दौड़
जिंदगी की दौड़
ना जाने वक्त ने क्या खेल खेला है,
ये शब्दों में बयां नहीं कर सकता हूँ l
क्या बताऊं कि मैंने क्या क्या झेला है,
जो अब जिंदगी में दर्द ही दर्द देखता हूँ।
जीता जो जंग है उसी के पीछे देखा काफ़िला है,
अब मुझे मेरा सय्यम टूटा सा देखता हूँ।
ना जाने ईश्वर तेरी ओर कहा रास्ता है,
कुछ खुद को खुद से हारा हुआ देखता हूँ।
कुछ सवाल मन में मेरे उठे है,
ऐ जिंदगी ये बता की दौड़ कैसे जीतू।
संघर्ष कब तक जारी है जिक्र कर दे,
कुछ ज़िंदगी की दौड़ में हारता नजर देखता हूँ।