कैसे कहूं...
कैसे कहूं...
चाहने लगा में तुझे क्यों
पहले तो न किसी को इतना चाहा
इस चाहत को तुझे में कैसे कहूँ...
इतनी परवाह तेरी है मुझे क्यों
ना की परवाह किसी की भी इतनी कभी
इस परवाह को तुझे मैं कैसे कहूँ...
तमन्ना हैं खुश रखूँ हमेशा तुझे
न पहले की कोई ऐसी तमन्ना
इन तमन्नाओं को तुझे मैं कैसे कहूँ...
हो गई कैसी ये दिल्लगी तुझसे क्यों
पहले तो न हुआ ऐसा कभी
इस दिल्लगी को यारा मैं कैसे कहूँ...
तुझे न याद करूँ तो बेकरार हो जाता हूँ
ये बेकरारी तो पहली न थी कभी
इस बेकरारी को जाना कैसे कहूँ...
चाहता हूँ कैसे बयां करूँ मेरे जज़्बात दिल के
नए से है ये जज़्बात जो न थे पहले कभी
इन जज़्बातों को यारा मैं कैसे कहूँ...

