गुलशन
गुलशन
जहां गुलशन बने थे,
वहीं तुम थे, वहीं मेरी दुनिया थी।
अनुराग वहीं था पनपा, विरह भी हुई वहीं पे,
वादे किये थे हमने, जन्मों तक साथ निभाने का।
ख़ैर! अब तक न सही, पर हम फिर मिलेंगे,
वहीं, जहाँ गुलशन बने थे, जहाँ पत्ते झड़े थे।
कहीं कुछ बदल तो नहीं गया, बीते इन सालों में,
हमारे प्रेम की यादें कहीं खो न गए हो वीराने में।
क्या पता, वहाँ किसी और का गुलशन होगा,
या हमारे अरमानों के पत्ते पड़ गए होंगे पीले।
ऐ वक़्त, तू ठहर जाता, विरह की उस बेला में,
चलता आज वहीं से, मिलते फिर उस मौसम में,
उस अपने से वीराने में, उस यौवन के चौबारे पे,
वहीं, जहाँ गुलशन बने थे, जहाँ पत्ते झड़े थे।