आसरा
आसरा
लाख कोशिश करता हूँ मगर कुछ रह ही जाता है
मुझ पर बेफिक्री का इलज़ाम लग ही जाता है।
ज़ख्म भी दिखते नहीं, दास्तां भी कह नहीं पाता
दिल के एक कोने में कुछ तो दबा रह ही जाता है।
हर मोड़ पर रुक कर सोचा, कहाँ गलत हो गया
क्यू मंज़िल का पता हर दफा खो ही जाता है।
लोग समझते हैं हसरतों का भंवर आसान है पर
इक हँसी के पीछे दर्द ए नाकामी छुप ही जाता है।
अब दिल को समझा कर आगे बढ़ जाता हूँ
दो कदम पर गुफ़्तगू का सिलसिला टूट ही जाता है।
अब क्या करे ऐ जिंदगी तेरा मिजाज ही ऐसा है,
सफर बाँटने को कोई न कोई मिल ही जाता है

