हम-तुम
हम-तुम
तुम मेरी धुरी का केंद्र-बिंदु,
मैं उल्कापिंड-सा गतिमान प्रिये,
तुम गार्गी-सी ज्ञानवान, मैं अबोध अंजान प्रिये।
तुम श्रृंगार-रस की खान-सी, मैं थार का रेगिस्तान प्रिये,
तुम पदमश्री सम्मान-सी, मैं अपमानित इंसान प्रिये।
तुम स्वर्गलोक की अप्सरा,
मैं पाताललोक का शैतान प्रिये,
तुम हरी-भरी इक बगिया-सी,
मैं परित्यक्त शमशान प्रिये।
तुम बसंत, तुम सावन-सी,
मैं जेठ का जलता पांव प्रिये,
तुम जंगल की घनी छांव-सी,
मैं ज्वालामुखी का अंगार प्रिये।
तुम जग की पालनहार-सी,&nb
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मैं भक्त तुम्हारा लाचार प्रिये,
तुम कर्णवीर-सी दानी,
मैं जन-जन का कर्जदार प्रिये।
तुम गंगा की पावन धारा-सी,
मैं हिचकोले खाता पतवार प्रिये,
तुम नदी के किसी किनारे-सी,
मैं डूबता-उबरता मझधार प्रिये।
तुम्हारी बोली देववाणी-सी,
मेरी बोली के कर्कश तार प्रिये,
तुम सरल, सुलभ, आसानी-सी,
मैं हाहाकार मचाता यलगार प्रिये।
तुम म्यान में रखी तलवार-सी,
मैं पीठ पर खंजर का वार प्रिये,
तुम संपूर्णता की मूरत-सी,
मैं अधूरे-प्रेम का अलंकार प्रिये।