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डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

4.5  

डॉ. प्रदीप कुमार

Romance

हम-तुम

हम-तुम

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तुम मेरी धुरी का केंद्र-बिंदु, 

मैं उल्कापिंड-सा गतिमान प्रिये, 

तुम गार्गी-सी ज्ञानवान, मैं अबोध अंजान प्रिये।

तुम श्रृंगार-रस की खान-सी, मैं थार का रेगिस्तान प्रिये,

तुम पदमश्री सम्मान-सी, मैं अपमानित इंसान प्रिये।

तुम स्वर्गलोक की अप्सरा, 

मैं पाताललोक का शैतान प्रिये, 

तुम हरी-भरी इक बगिया-सी, 

मैं परित्यक्त शमशान प्रिये।

तुम बसंत, तुम सावन-सी, 

मैं जेठ का जलता पांव प्रिये, 

तुम जंगल की घनी छांव-सी, 

मैं ज्वालामुखी का अंगार प्रिये।

तुम जग की पालनहार-सी,&nb

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मैं भक्त तुम्हारा लाचार प्रिये, 

तुम कर्णवीर-सी दानी, 

मैं जन-जन का कर्जदार प्रिये।

तुम गंगा की पावन धारा-सी, 

मैं हिचकोले खाता पतवार प्रिये, 

तुम नदी के किसी किनारे-सी, 

मैं डूबता-उबरता मझधार प्रिये।

तुम्हारी बोली देववाणी-सी, 

मेरी बोली के कर्कश तार प्रिये,

तुम सरल, सुलभ, आसानी-सी, 

मैं हाहाकार मचाता यलगार प्रिये।

तुम म्यान में रखी तलवार-सी, 

मैं पीठ पर खंजर का वार प्रिये, 

तुम संपूर्णता की मूरत-सी, 

मैं अधूरे-प्रेम का अलंकार प्रिये।


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