प्रेम दिवानी
प्रेम दिवानी
इश्क इबादत है, तो प्रेम पूजा
अंतर्मन से बहता अथाह प्यार।
टीका, बिंदी, कर्णफूल, हार,
सजा आल्ता हाथों, हो गई मैं तैयार।
सोलह सिंगार कर फूलों से
कर रही इंतजार पलकें झुकाय।
फूलों की खुशबू सी महकती
चंदा की चांदनी सी बहती
कितना सुंदर रूप मनोहरी।
शरमाई सी सकुचाई सी गौरी।
दिन बीते, सांझ भी गुजरी ,
विरह की अगन तड़पाय।
जोगन बन गई मैं प्रेम दीवानी
आ जाओ प्रिय अब तो।
इंतजार भी किया न जाय।
खत्म करो यह इंतजार प्रिये
माथे की लट रही बिखर
गजरा भी रहा कुम्हलाय।

