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Pratibha Bhatt

Romance

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Pratibha Bhatt

Romance

अलबेली

अलबेली

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चित से मनभावन को लगा बैठी,

मैं अलबेली सुध-बुध खो बैठी।


नाम ना तेरा जाना भेद ना जाना,

मन का मयूरा बोल ना जाना।


धीरज धर मन प्रीत लगाई ना टूटे,

कैसे हाथ तुझसे मेरा जो छूटे ।


डोल रहा मन मयूरा लो ये हार,

मन का मन कर लिया श्रृंगार।


जोत जली हृदय में प्रेम की वंशी,

फिर मैं किसी और में न फंसी।


चुप हो जा ना कर स्वर कोलाहल,

बैचेन मन में बैठा पंछी चंचल।


बात बेबात ऐसे रूठना हाथ छोड़कर,

तुझ बिन सूना हिये क्रोध मत कर ।


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