अलबेली
अलबेली
चित से मनभावन को लगा बैठी,
मैं अलबेली सुध-बुध खो बैठी।
नाम ना तेरा जाना भेद ना जाना,
मन का मयूरा बोल ना जाना।
धीरज धर मन प्रीत लगाई ना टूटे,
कैसे हाथ तुझसे मेरा जो छूटे ।
डोल रहा मन मयूरा लो ये हार,
मन का मन कर लिया श्रृंगार।
जोत जली हृदय में प्रेम की वंशी,
फिर मैं किसी और में न फंसी।
चुप हो जा ना कर स्वर कोलाहल,
बैचेन मन में बैठा पंछी चंचल।
बात बेबात ऐसे रूठना हाथ छोड़कर,
तुझ बिन सूना हिये क्रोध मत कर ।

