इंसान और सड़क
इंसान और सड़क
भीड़ चलती है
भरे रास्तों पर
उस भीड़ में
हर इन्सान अकेला
भीड़ का हिस्सा बनता है
अनजाने में
कुछ देर के लिए
अपने अस्तित्व
और पहचान
अदृश्य रखकर
चल पड़ता है
धीमी और तेज
गति चाल से
गंतव्य तक
पहुंचने की जल्दी
काफ़िला चलता है
अपनी - अपनी
मंज़िल की दौड़े
कुछ पैदल कुछ साधनों से
बतियाते हुए
गलियारे कूचे
सड़कों पर शोर
अचानक थम जाता है
उन रातों को
एक पल की
हलचल और
दूसरे पल का सूनापन
तब करती है सड़कें,
तिराहे और चौराहे
आपस में बातें
जो सुनती
रहती है दिनभर
सांझा करती हैं
अपनी भीड़ के
अनकहे किस्से .........