STORYMIRROR

Pratibha Bhatt

Abstract

4  

Pratibha Bhatt

Abstract

इंसान और सड़क

इंसान और सड़क

1 min
314


भीड़ चलती है

 भरे रास्तों पर

उस भीड़ में

 हर इन्सान अकेला

भीड़ का हिस्सा बनता है


अनजाने में

कुछ देर के लिए

अपने अस्तित्व

 और पहचान

अदृश्य रखकर

चल पड़ता है

धीमी और तेज

 गति चाल से

गंतव्य तक

 पहुंचने की जल्दी

काफ़िला चलता है


 अपनी - अपनी

मंज़िल की दौड़े

कुछ पैदल कुछ साधनों से

बतियाते हुए

गलियारे कूचे

सड़कों पर शोर

अचानक थम जाता है


उन रातों को

एक पल की

हलचल और

दूसरे पल का सूनापन

तब करती है सड़कें,

 तिराहे और चौराहे

आपस में बातें

जो सुनती

रहती है दिनभर

 सांझा करती हैं

अपनी भीड़ के

अनकहे किस्से .........


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract