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Nandini Mayangade

Romance

4  

Nandini Mayangade

Romance

चल दरिया पर..।

चल दरिया पर..।

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वो समंदर की लेहेरे मुझे बोले... अरे आ चल, 

वो मिट्टी जिसपे है बीता मेरा बचपन.. 

वो रेत के कुंऍं.... वो माटी के किले.. 

क्या हम दोनो वहा खूब हे खेले.. 


बाबा के साथ वहा रोज घूमने जाना, 

लेहरोको देखा वो सुकून सा पाना... 

जो बचपन मे नन्हे हात पकड़ ले जाना , 

और बुढ़ापेमे उन हात के सहारे से जाना

वो रास्ता भी एक और एक थी गली

नन्ही सी जान... बडे हात लेकर चली... 

आज भी मन करता हे जाके जिलु वो बचपन... 

पर वो दोस्त ना साथ मेरे... जो बोले चल दरिया पर... 


बाबा ने बोला ... 

बाबा ने बोला.. ये तेरा सबसे गेहरा दोस्त है, 

जो फेके बुराई ना रखे दिल मे क्रोध है .. 

वो विशाल हे सबसे... वही सबसे हसी है .. 

बुराई ना उसके पेट मे टिकी हे.. 

वो इतना विशाल और तू इतना सा बुझ्दिल .. 

वो फेके सब बाहर ... और तू पाले वो घिन ... 

वो गेहरा हे दोस्त मेरा .. जानु मे उसको .. 

वो विशाल हे इतना निगल लेगा तुझको ... 


वो लेहरे 

वो लेहरे तेरी आज भी सुकू लाती हे ....

कहा जाके बैठू वो मिट्टी नजर नही आती हे .. 

वो सपने... जो देखके आएरोप्लाने को आते हे

जो सुकून दिलासा...देके चले जाते हे .. 

वो यादे तेरे संग.. बिता जो मेरा बचपन .. 

आज भी ले चल जहाँ बिता मेरा बचपन

आज भी ले चल मुझे दरिया पर..। 


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