जीवन में सावन
जीवन में सावन
जीवन में आया सावन पर बरसात अभी बाकी है
बूंदें कहाँ बरस रही क्यों रूठा हुआ हमसे साकी है
आशा है कुछ प्यार भरी बूंदें धरती पर भी बरसेगी
रिमझिम बरसकर उपवन की हर कलियाँ महकेगी
अब तो बिन बरसात जैसे विरह की बेला लगती है
जब व्यंग्य करते लोग चोट हृदय पर गहरी लगती है
तिमिर घन में जब कौंध आई जोरदार बिजलियाँ
सौंधी खूशबू के आते खोल दी सब बंद खिड़कियाँ
बरसात के इस मौसम में महक उठी थी हर डाली
पिया मिलन की आस चमक रही गालों की लाली
बिन बरसात जैसे व्यथा को फिर पंख लगने लगे
मध्यम-मध्यम स्वप्न के भी घाव अब उगने लगे हैंI

