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mukta singh

Abstract

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mukta singh

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गलतफहमियों का फासला

गलतफहमियों का फासला

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 *गलतफहमियों का फासला*


हमारे दरमियान

ये कैसे फासले हो गए 

गलतफहमियों का सैलाब येसा उमड़ा

कि "हमतुम", "जमीं और आसमां" हो गए ।


बस तसव्वुर ये दिल है इतनी कि

एक दिन कोई बादल बन आएगा 

और अपनी बूंदों से हमें एक कर जाएगा

क्यूंकि सुना है आसमां भी 

बादलों पे सवार जमीं से मिलने आता है।


उस एक क्षण के इंतज़ार में 

बाट जोहती रही जिंदगी 

पर अब तो इंतेहां हो गई तेरे वहम की

तू ना आया पर आया तेरा फरमान है।


लगता है कि अब बरसातें तो आएंगी, 

पर हमारा दामन सूखा ही रहेगा

क्यूंकि हमारे चारो ओर तेरे दगा की दीवारें हैं।


बस अब अंजुमन मुक्ता की आरज़ू है इतनी

कि दोस्ती में अब कोई वहम ना पाले

वर्ना हर दोस्त "जमीं और आसमां" बन जाएंगे

खफा की दीवारें होंगी इतनी ऊंची कि

"हम - तुम", "मैं और तुम", बन जाएंगे।


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