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mukta singh

Others

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mukta singh

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अनूठी रचना "नारी"

अनूठी रचना "नारी"

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ईश्वर ने बहुत ही फुरसत में बनाया होगा ,

एक पल को अपने सृजन पे इतराया होगा,

ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

तुम वो पारस हो जो बदल देती दूसरे को,

प्रेम नहीं करती, प्रेम ही बन जाती हो,

जिस लोहे को छूती हो उसे कनक बनाती हो ।


ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

सजग, सचेत, सबल, समर्थ, सर्वगुणधर्मी हो,

एक पल अदम्य साहस, दूसरे ही पल कोमलागनी हो,

हे विशाल हृदया, समय पड़ने पे महाकाली हो,

सरस्वती का ज्ञान और लक्ष्मी स्वरूपा हो तुम।


ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

एक अलग ही साँचे में गढ़ा है ईश्वर ने तुम्हें,

जितना घिसती उतना निखरती हो तुम,

कभी मोम तो कभी पत्थर बन डींग जाती हो,

पानी सा अस्तित्व है तुम्हारा ,

जिसमें मिली वही बन जाती हो ।


ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

दीये की रौशनी बन तम मिटाती हो तुम,

वहीं दुश्मनों को उसी आग में जलाती हो,

अरमानों को रौंद कर पत्थर बन जाती हो,

वही प्रेम पग से अहिल्या बन जी उठती हो,

बाहर से कोमल, अंदर से पाषाण हो ।


ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

आया जब युग निर्माण का समय,

आजादी की खुदी नींव में साहस का पत्थर भरा,

बन रानी लक्ष्मीबाई, कमलाबाई सरीखी,

आजादी के सपने का उलगुलान किया,

कल्पना, सुनीता बन चाँद को भी प्रणाम किया,

पिटी उषा , दीपिका बन देश रौशन नाम किया,

और जाने कितने रूपों में भविष्य निर्माण किया ।


ब्रह्मा की एक अनूठी रचना नारी हो तुम,

ना ही अबला नादान, ना ही दबी पहचान हो,

स्वाभिमान से जीती, सक्षम बलधारी हो तुम,

बॉर्डर पे दुश्मनों से लोहा लेती देश की मान हो,

घूंघट की मर्यादा निभाती, फर्राटे से प्लेन उड़ाती,

देश की सम्मान हो ,पापा-मम्मी की जान हो तुम,

सिंदूर की मर्यादा का अभिमान हो तुम,

ब्रह्मा की एक अनूठी रचना हो तुम,

नारी हो तुम , संस्कृति की पहचान हो ।



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